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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजो राज में भारत के अंदर यूरोपियन साम्राज्य कायम करने की आकांक्षा उत्पन्न हुई ! दूप्ले को भारतवालियों में दो खास कमजोरियां नज़र आई, जिनसे उसने पूरा पूराफायदा उठाया। एक यह कि भारत के विविध नरेशों की उस समय की आपस की ईर्षा और प्रतिस्पर्धा के दिनों में विदेशियों के लिये कभी एक और कभी दूसरे का पक्ष लेकर धीरे धीरे अपना बल बढ़ा लेना कुछ कठिन न था, और दूसरे यह कि इस कार्य के लिये यूरोप से सेनाएं लाने की आवश्यकता न थी। बल, वीरता अथवा सहनशक्ति में भारतवासी यूरोपनिवासियों से कहीं बढ़ कर थे। अपने सामयिक अफसरों की वफ़ादारी का भाव भी भारतीय सिपाहियों में जबरदस्त था। किन्तु राष्ट्रीयता के भाव या 'स्वदेश' के विचार तक का उनमें अभाव था। उन्हें बहुत आसानी से यूरोपियन ढंग की सैनिक शिक्षा दी जा सकतो थी और यूरोपियन अफसरों के अधीन रक्खा जा सकता था। इसलिये विदेशियों का यह सारा कार्य बड़ी सुन्दरता के साथ हिन्दोस्तानी सिपाहियों से चल सकता था। दूप्ले को अपनी इस महत्वाकांक्षा की पूर्ति में केवल एक बाधा नज़र आती थी, और वह थी अंगरेजों की प्रतिस्पर्धा । यूरोप के अंदर भी उन दिनों फ्रांस और इंगलिस्तान एक दूसरे . के शत्रु थे। थोड़े दिनों के बाद वहाँ फ्रांस और फ्रांसीसी और न आर इंगलिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया। करनाटक अंगरेज़ __में करीव सौ साल से मद्रास की बस्ती अंगरेजों के अधिकार में थी और यही उस समय उनके भारतीय व्यापार का मुख्य