पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२९७

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सिराजुद्दौला

सिराजुद्दौला विद्रोही इस समय सिराजुद्दौला के हाथों में थे। वह चाहता तो वहीं उनका काम तमाम कर सकता था। किन्तु उसने उनकी जान बख्श दी और उन्हें अपने साथ ले लिया। कासिमबाज़ार की कोठी के तिजारती माल को भी उसने बिलकुल हाथ न लगाया। केवल वहाँ के हथियारों और गोला बारूद को वहाँ से हटा लिया। ___वाट्स और दूसरे अंगरेजों को साथ लेकर ५ जून १७५६ को सिराजुद्दौला कलकत्ते की ओर बढ़ा। उन दिनों की सैन्ययात्रा निस्संदेह कुछ और ही थी। रेलों का उस समय संसार में कहीं निशान न था, सड़के भी हर जगह मौजूद न थीं। बंगाल की सख से सख़्त धूप और गरमो का महीना, उस पर रमजान के दिन, जव कि सेना के अधिकांश मुसलमान अफ़सर और सिपाही दिन दिन भर रोज़ा रखते थे। भारी भारी तोपें और अन्य सब सामान जिसके बिना उन दिनों यात्रा असम्भव थी और जिसे हाथियों और बैलों से खिंचवाकर ले जाना होता था। इन सब हालतों में सिराजुद्दौला की सेना ने ११ दिन के अन्दर १६० मील का सफर तय किया। अंगरेज़ों के काफ़ी युद्ध के जहाज़ कलकत्ते पहुँच चुके थे और __ इन लोगों ने अपनी ओर से सिराजुद्दौला के तानाह में अंगरेजों विरुद्ध खुली बगावत शुरू कर दी थी। इस बीच को हार १३ जून को अंगरेजी सेना ने कलकत्ते से पाँच मोल नीचे हुगली के इस पार तान्नाह का किला वहाँ के मुट्ठी भर भारतीय संरक्षकों के हाथों से छीन लिया। सिराजुद्दौला ने