लिराजुद्दौला सैनिकों ने “पराजित अंगरेजों के साथ कोई बुरा बर्ताव नहीं किया।" और उनके साथ के "मुसलमान मुल्ला खुदा की बंदगी में लगे रहे। किले और कोठी के अंदर का गोला बारूद सब नवाब ने हटवा लिया, किन्तु जितना तिजारती माल कोठी के अंदर भरा हुआ था उसे सिराजुद्दौला या उसके सैनिकों ने हाथ तक नहीं लगाया, सिराजुद्दौला की श्रान्ना से उसे हिफाज़त के साथ ज्यों का त्यो रहने दिया गया। यही व्यवहार सिराजुद्दौला ने अंगरेजों की दूसरी कोठियों में किया। कलकत्ते के बहुत से अंगरेज सिराजुद्दौला की सेना के किले में दाखिल होने से पहले ही पीछे की ओर से अपने जहाजों में बैठकर भाग गए थे। जो रह गए थे उन्होंने अब सिराजुद्दौला से प्रार्थना की कि हमारी जान बख्शी जाय और हमें बंगाल छोड़ कर अपने साथियों के पास मद्रास चले जाने की इजाजत दी जाय । सिरा- क्षुद्दौला ने सहर्ष उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली । अनेक यूरोपियन इतिहास लेखक इस बात की शहादत देते हैं कि इस अवसर पर सिराजुद्दौला की शक्ति को देख कर अधिकांश यूरोपियन चकित और भयभीत हो गए। ___जॉन कुक लिखता है कि सिराजुद्दौला की मुसलमान सेना का नियम था कि वे रात को कभी न लड़ते थे और शाम होते ही गोलाबारी बंद कर देते थे। कुक यह भी लिखता है कि यदि ऐसा न होता तो २० तारीख से पहले ही अंगरेजों की बुरी हालत हो गई होती।
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