E सिराजुद्दौला ५१ में से केवल २३ जिन्दा बचे, और वह भी भयंकर अधमरी हालत में। किन्तु उस समय के इतिहास की खोज करने वालों पर अब यह वात अच्छी नरह प्रकट हो चुकी है कि ब्लैक होल का यह सारा किल्ला विलकुल भूठा है और केवल सिराजुद्दौला के चरित्र को कलंकित करने और अंगरेजों के बाद के कुचक्रों को जायज़ करार दन के लिए गढ़ा गया था। विद्वान इतिहासलखक अक्षयकुमार मैत्र ने अपने बंगला ग्रंथ "सिराजुद्दोला" में इस किस्म के विरुद्ध अनेक अकाट्य युक्तियाँ संग्रह को हैं। अब्बल तो इतनी छोटी ( २६७ वर्ग फुट ) जगह में १४६ मनुष्य चावलों के बोरों की तरह भी नहीं भरे आ सकते । इमझ अलावा सैयद् गुलाम हुलेन की "लियरउल- मुताम्बरीन" में या उस समय के किसी भी प्रामाणिक इतिहास में, या कम्पनी के रोजनामचों, “काररवाई के रजिस्टरों" या मद्रास कौन्सिल की बहसों में इस घटना का कहीं ज़िक्र नहीं पाता। लाइव और वाट्सन ने कुछ समय बाद नवाब की ज्यादतियों और कम्पनी की हानियों को दर्शाते हुए नवाब के नाम जो पत्र लिखे, उनमें इस घटना का कहीं जिक्र नहीं आता, न अलीनगर के संधिपत्र में उसका कहीं नाम है। बहुत समय बाद क्लाइव ने कम्पनी के डाइ- रेक्टरों के नाम एक लम्बा पत्र लिखा, जिसमें उसने सिराजुद्दौला के साथ कम्पनी के क्रूर व्यवहार के अनेक सबब गिनवाए हैं। उनमें इन घटना का कहीं इशारा भी नहीं मिलता। अंगरेजों ने अंत में मीर
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