लेखक की कठिनाइयां से होता है। शायद कोई भी मनुष्य अपने समय की राजनैतिक अवस्था के ओर से पूरी तरह निष्पक्ष नहीं हो सकता । जाने या अनजाने हर लेखक के विचार किसी न किसी ओर अधिक झुकते ही हैं । कोई दो लेखक ऐसे भी नहीं मिल सकते जो अपने समय की किसी एक घटना को या किस खास तरह की घटनाओं को एकसा महत्व देते हों । व्यक्तिगत पक्षपात या व्यक्तिगत प्रवृत्तियों के अलावा हर मनुष्य के चित्त मे सामाजिक, जातीय या साम्प्रदायिक प्रवृत्तियाँ भी अपनी जगह रखदी ही हैं, और उस मनुष्य की लेखनी पर अपना प्रभाव डाले बिना नहीं रह सकतीं। इसलिए आम तौर पर पूरी तरह निष्पक्ष इतिहास का मिल सकना यदि बिल्कुल असम्भव नहीं तो करीब करीब असम्भव ज़रूर है । इस तरह के पक्षपात से रंगे हुए इतिहास पाठकों में भी उसी तरह के पक्षपात को बनाए रखने का एक अनन्त ज़रिया होते हैं। इस सब के अलावा मनुष्य की परिमित मानसिक शक्तियों पर अनन्त तिथियों और व्यक्तियों के हालात या चरित्रों का भार डालने की भी खास ज़रूरत नहीं है। अपने या दूसरों के दोषों को याद रखने की निस्वत मनुष्य जाति के संचित पुण्य विचारों पर दृष्टि रखना ही मनुष्य के लिए अधिक श्रेयस्कर है। खास कर राजनीति में जहाँ कि मानव प्रेम और आत्मोत्सर्ग की जगह द्वेष और स्वार्थ ही हमारे कृत्यों को अधिक प्रभावित करते हों। यही वजह है कि पुराने जमाने के विद्वान अपनी अपनी क़ौमों के विस्तृत और पूरे पूरे इतिहास लिखने के बजाय कल्पित या अर्ध- ऐतिहासिक कथाओं के ज़रिये अपने समय के उच्च से उच्च नैतिक, सामाजिक और धार्मिक आदर्शों को चित्रित कर देना ज़्यादा अच्छा समझते थे। यही वजह है कि अनेक उच्च से उच्च कोटि के प्राचीन ग्रन्थों में लेखक का
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