भारत में अंगरेजी राज ___अपनी वीरता और उदारता दोनों का सबूत देने के बाद __विजयो सिराजुद्दौला २४ जून को कलकत्ते से सिराजुद्दौला की । अपनी राजधानी की ओर लौटा। मार्ग में हुगली कलकत्ते से वापसी के ऊपर उसने एक दबार किया, जिसमें फ्रांसीसी कोठी के वकील ने साढ़े तीन लाख रुपए और डच कोठी के वकील ने साढ़े चार लाख रुपए अपनी अपनी राजभक्ति दर्शाने के लिए सिराजुद्दौला की नज़र किए । सिराजुद्दौला ने उन्हें अपना व्यापार जारी रखने की इजाजत दे दी। सिराजुद्दौला को अभी तक आशा थी कि इसी तरह का समझौता अगरेज़ो के साथ भी हो जायगा। ११ जुलाई सन् १७५६ ई० को सिराजुद्दौला मुर्शिदाबाद पहुँच गया। थोड़े ही दिनों बाद पूनिया के नवाब शौकतजंग ने फिर बगावत का झंडा ऊँचा किया । १६ अक्तूबर सन् १७५६ को राज- महल नामक स्थान पर सिराजुद्दौला और शौकतजंग की संनाओं में मुकाबला हुआ, जिसमें शौकतजंग काम आया और सिराजुद्दौला ने विजय प्राप्त की। सिराजुद्दौला अव शौकतजंग की जगह राजा युगलसिंह नामक एक हिन्दू को पूनिया की गद्दी पर बैठाकर मुर्शिदाबाद लौट आया। इस बार सिराजुद्दौला की प्रजा ने उसे बधाइयाँ दी और दिल्ली के सम्राट ने एक नए फरमान के ज़रिये उसे बंगाल, बिहार और उड़ीसा तीनों प्रान्तों की सूबेदारी की मसनद पर फिर से पक्का किया। यह बात याद रखने योग्य है कि सिराजुद्दौला प्रारम्भ से जो कुछ करता था दिल्ली सम्राट के नाम पर और सम्राट एक सेवक की हैसियत से ही करता था।
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