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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज इस हालत में नवाब सिराजुद्दौला ने फरवरी सन् १७५७ ई० को अंगरेजों के साथ वह सन्धि स्वीकार की जो की 'अलीनगर की सन्धि' के नाम से प्रसिद्ध है। सन्धि इस सन्धि की सात शत ये थीं :- (१) जितनी रिश्रायते दिल्ली सम्राट ने अंगरेजों के साथ कर रक्खी थीं वे सब फिर से मंजूर कर ली जावें। (२) बंगाल, विहार और उड़ीसा भर में जिस किसी माल के साथ अंगरेजों का दस्तक' हो वह सब बिना महसूल आने जाने दिया जावे। (३) कम्पनी की कोठियाँ और कम्पनी या उसके नौकरों या असामियों का वह नमाम माल असवाब, जो नवाब ने जब्त कर लिया था वापस दे दिया जावे, और नवाब के आदमियों ने जो कुछ माल लूट लिया था उसके बदले में एक नकद रकम दी जावे। (४) अंगरेज जिस तरह उचित समझे उस तरह कलकत्ते की किलेबंदी कर लें। (५) अंगरेजों को सिक्के ढालने का अधिकार रहे। . (६) नवाव और उसके मुख्य पदाधिकारी और मंत्री इस सुलहनामे पर दस्तखत करें। (७) अंगरेज कौम और अंगरेज कम्पनी की तरफ से पेड- मिरल वाट्सन और करनल क्लाइव दोनों इस बात का वादा करें कि जब तक नवाब की ओर से सन्धि का उल्लंघन न हो, तब तक हम नवाब के राज में श्रमन से रहेंगे।