लिराजुद्दौला भारत में अंगरेजी और फ्रांसीसियों के दरमियान प्रतिस्पर्धा इस समय जोरों पर थी। इसलिए अंगरेजों ने इस बात पर जोर दिया कि सुलहनामे में एक शर्त यह भी रक्खी जावे कि सिराजु- दौला निरपराध झांसीसियों पर चढ़ाई करके उन्हें इस मुल्क से बाहर निकाल दे। किन्तु सिराजुद्दौला ने इस शर्त को मानने से इनकार कर दिया। इस सन्धि के साथ साथ अंगरेजो ने नवाब से यह इजाजत ले ली कि मुर्शिदाबाद के दरबार में अंगरेजों का एक एलची रहा करे। यह भी तय हो गया कि जब कभी युद्ध इत्यादि के समय नवाब को जरूरत हो और नवाव आज्ञा दे तो अंगरेज़ अपनी सेना और धन दोनो ले नवाब की मदद करें। इस सुलहनामे की स्याही अभी सूखने भी न पाई थी कि . अंगरेजों ने, जिनका असली उद्देश वग़ावत था, सन्धि तोड़ने इन फौरन उसे तोड़ने के उपाय सोचने शुरू किए। की के प्रयल दरबार में एक अंगरेज एलची को रहने की इजाज़त देकर सिराजुद्दौला ने एक नई वला अपने सर ले ली। फरवरी को सुलहनामे पर दस्तखत हुए और १२ को क्लाइव और उसके साथियों ने सिलेक्ट कमेटी के नाम अपने एक पत्र में खुले तौर पर यह राय प्रकट की :- "और भी नई रिश्रायते नवाब से मांगी जा सकती हैं x x x और यदि एक ऐसा आदमी नवान के दरबार में एलची नियुक्त करके भेजा जाय जो
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