पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३३३

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सिराजुद्दौला

सिराजुद्दौला कमेटी के मेम्बरों के नाम जो पत्र लिखा उससे इस मामले के स्वरूप का खासा पता चल सकता है। क्लाइव ने लिखा :-- ___ "महाशय ! जरा सोचिये कि हमारी इन हाल की काररवाइयों के विषय मे दुनियां क्या राय कायम करेगी। चन्दरनगर के (फ्रांसीसी ) गवरनर और उसकी कौंसिल को तरफ से हमारे पास इस मज़मून का पत्र पाया कि हम गङ्गा प्रांत में आपके साथ सुलह से रहने के लिए राजी हैं। हमने इसके जवाब में यह इच्छा प्रकट की कि आप अपने वकील भेजें और उन्हें लिख दिया कि हम खुशी से श्रापके साथ समझौता करने को तैयार हैं। तो क्या हमने इस उत्तर द्वारा एक प्रकार से सुलह स्वीकार नहीं कर ली? इसके अलावा क्रांसीसी वकीलों के आने के बाद क्या हमने सुलह को इस तरह की शर्त तैयार नहीं की, जो दोनों पक्षों के लिए सन्तोषजनक है और क्या हम इस बात को मंजूर नहीं कर चुके हैं कि हर शर्त पर दोनों पक्षों के दस्तनत हों, दोनों को मोहरे लगें और दोनों उसके पालन की प्रतिज्ञा करें ? फिर अब नवाब क्या सोचेगा ? जब हम अपनी ओर से नवाब से वादे कर चुके हैं और वह इस सन्धि को पालन कराने की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने की रजामन्दी तक जाहिर कर चुका है तो इसके बाद निस्संदेह नवाब और सारी दुनियां यही समझेगी कि हम हलकी और श्रीछी तबीयत के आदमी हैं या हमारा कोई भी सिद्धांत नहीं xxxi" वास्तव में क्लाइव वाट्सन की अपेक्षा कहीं अधिक पका धूर्त __ था। वह उस समय चुपचाप वाट्स के ज़रिये, काइच की धूर्तता " जो मुर्शिदाबाद के दरबार में एलची था, जाल- साज़ी करवाकर नवाब की अनुमति का एरवाना प्राप्त कर लेने की. कोशिश में लगा हुआ था।