भारत में अंगरेजी राज का वह जाली खत मुर्शिदाबाद से चला, जिसमें कहा जाता है कि नवाब ने अंगरेजों को चन्दरनगर का मोहासरा करने की इजाजत दे दी। ११ को एक दूसरे पत्र द्वारा क्लाइव ने फ्रांसीलियों पर यह एक नया इलज़ाम लगाया कि आप लोगों ने अंगरेजी सेना से भागे हुए कुछ धागियों को अपने यहाँ छिपा रक्खा है। युद्ध के लिए. बस यह वहाना काफ़ी था। १२ को चन्दरनगर से दो मील की दूरी पर क्लाइव की सेना आ पहुँची । इसी समय वाट्सन भी अपनी सेना लेकर पहुँच गया । १४ मार्च को चन्द्रनगर का मोहासरा शुरू हुआ और २३ मार्च को चन्दनगर अंगरेजों के हाथों में श्रा गया। बंगाल के अंदर फ्रांसीसियों की दूसरी कोठियों के विषय में अंगरेजों और फ्रांसीसियों के दरमियान एक सन्धि हो गई। चन्दरनगर की इस सरल विजय में भी युद्ध कौशल या वीरता चन्दानगर के दो ने अंगरेजों का इतना साथ नहीं दिया जितना मुख्य विश्वास- कूट नीति ने। दो बड़े विश्वासघातकों के घातक नाम इस मोहासरे के इतिहास में मिलते हैं। पहला एक फ्रांसीसी अफ़सर लेफ्टनेन्ट दी तेरानो, जिसने रुपए लेकर दरिया की ओर का मार्ग अंगरेजो के लिए खोल दिया और दूसरा हुगली का हिन्दुस्तानी फौजदार, महाराजा नन्दकुमार, जिसे सिराजुद्दौला ने समाचार पाते ही एक बहुत बड़ी सेना सहित फ्रांसीसियों की सहायता और चन्दरनगर की भारतीय प्रजा की रक्षा के लिए पहले से चन्दरनगर भेज दिया था, किन्तु जिसे ऐन मौके पर अमीचंद के धन ने अंगरेजों की ओर खींच लिया।
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