पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३३७

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सिराजुद्दौला

सिराजुद्दौला फ्रांसीसी विश्वास घातक के विषय में एक यूरोपियन लेखक ब्लॉकमैन लिखता है :--- "तेरानो को, जोकि इस विश्वासघात के सबब बदनाम और 'रु-स्याह' हो गया था, अपनी कृतघ्नता के बदले में अंगरेज़ों से बहुत बड़ी रकम प्राप्त हुई । उसने इस धन का एक भाग अपने घर फ्रांस में अपने बूढ़े कमजोर आप के पास भेजा, किन्तु बाप ने जब अपने बेटे के इस लज्जास्पद व्यवहार का हाल सुना तो उसने धन वापस कर दिया। इस पर तेरानो को बडी गैरत आई । शर्म ने 'उसका पल्ला पकड़ लिया, उसने अपने तई मकान के अंदर बन्द कर लिया; चन्द रोज़ के बाद उसका शरीर मकान के दरवाजे पर एक तौलिए से लटका हुआ मिला। ज़ाहिर था कि उसने अात्महत्या कर दूसरे यानी भारतीय विश्वासघातक के विषय में स्कैफ़टन और थॉर्नटन दोनों ने अपने ग्रन्थों में साफ लिखा है कि अंगरेजों ने श्रमीचन्द की मार्फत नन्दकुमार को रिशवत दी और अंगरेज़ी सेना के पहुंचने पर फ्रांसीसियों और भारतीय प्रजा दोनों को अरक्षित छोड़ कर नन्दकुमार अपनी तमाम सेना सहित चन्दर- नगर से हट गया। सिलेक्ट कमेटी की १० अप्रैल सन् १७५७ की रिपोर्ट में अमीचन्द और नन्दकुमार दोनों को धन्यवाद देते हुए यह भी साफ़ लिखा है कि-"यदि दीवान नन्दकुमार की सेना न हटा ली गई होती तो हमारे लिए विजय प्राप्त कर सकना असम्भव ही होता। Votes on Surajuddowla, Journal of the Asiatic Society, 1867