पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३४३

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सिराजुद्दौला

साजिश सिराजुद्दौला ७ वाट्सन की सलाह से मुर्शिदाबाद के दरबार में बैठा हुआ वाट्स . सिराजुद्दौला को बंगाल की मसनद से उतार मुर्शिदाबाद में में कर किसी दूसरे को उसकी जगह बैठाने और देश वाट्स की में गदर करा देने की साजिशों में लगा हुआ था। इतिहास लेखक एस० सी० हिल लिखता है :- "अंगरेज़ एलची की थैली अधिक लम्बी थी, इसलिए वह न केवल दरबार के खास खास आदमियों बल्कि नवाब के मंत्रियों पर भी प्रभाव जमा सका। चतुर तथा दूरअंदेश श्रमीचन्द से उसे खूब सहायता मिली। किन्तु वाट्स कोई थैली अपने साथ यूरोप से न लाया था। वास्तव में श्रमीचन्द की थैली ही इस समय अंगरेज़ी की थैली थी। जिन भारतीय देशद्रोहियों ने इस साजिश में अंगरेजों का साथ दिया उनमें मुख्य राजा मानिकचन्द, राजा राजवल्लभ, राजा दुर्लभ- राम, मीर जाफर और दो जैन संठ थे। इनमें से हरएक अपना अपना स्वार्थ पूरा करना चाहता था। जैन सेठ दो भाई थे जो शाही खज़ाञ्ची, समाम सूबे के सरकारी साहूकार और शाही टकसालों के ठेकेदार थे। ये लोग अपने किसी नीच स्वार्थ के लिए सिराजुद्दौला के एक मुलाजिम यारलुप्त खाँ को मसनद पर बैठाना चाहते थे। किन्तु मीर जाफ़र सिराजुद्दौला के नाना अलीवर्दी ख़ाँ का बहनोई था, उसका प्रभाव अधिक था, इसलिए अंगरेज उसे नवाव बनाना

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