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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३७१

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मीर जाफ़र

११५ मीर जाफ़र ओर बढ़े। चार महीने से ऊपर यह भारी सेना मैदान में रही, _ इसका सारा खर्च मीर जाफ़र पर पड़ा, किन्तु राजा रामनारायन समसमा गोली एक भी न चलने पाई । क्लाइव इस समय मीर जाफ़र को खासा चकमा दे रहा था। रामनारायन जैसे श्रादमी को सदा के लिए अपना शत्रु बना लेना अंगरेजों के लिए हितकर न था। क्लाइव का उद्देश इस समय राम नारायन पर कम्पनी के बल का सिक्का जमाना, उसे मोर जाफर की ओर से सशंक कर देना, उससे धन वसूल करना और अंत मैं स्वयं मध्यस्थ बनकर रामनारायन के हक में फैसला करा देना मालूम होता था। ___२३ फरवरी सन् १७५८ को पटने में दरबार हुआ । लाइव ने मध्यस्थ का श्रासन लिया। मीर जाफ़र का बेटा मीरन नाम के लिए बिहार का नवाब बनाया गया और शासन का तमाम अधि- कार मीरन के नायब की हैसियत से ज्यों का त्यो राजा रामनारायन के हाथों में छोड़ दिया गया ! इस अनुग्रह के बदले में रामनारायन से ७ लाख रुपए नकद वसूल किए गए। इतिहास लेखक और्म लिखता है कि-"क्लाइव की जो मुराद थी, वह सव पूरी हो गई।"* कुछ दिनों बाद के एक पत्र में क्लाइव ने रामनारायन को "अंगरेज़ों का पक्का हितसाधक" लिखा है। क्लाइव अपने मालिकों को भी नहीं भूला । उन दिनों जितना शोरा बंगाल में बिकता था, लव पटने से ऊपर के प्रदेश में तैयार

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