यात्रा ११६ भारत में अंगरेजी राज होता था। लाइव ने अब नवाव पर जोर देकर शोरा तैयार कराने का ठेका कम्पनी के नाम हासिल कर लिया, जिससे कम्पनी का व्यापार और बढ़ गया। मई सन् १७५८ ई० में क्लाइव सुर्शिदाबाद लौटा। कुछ दिनों बाद मीर जाफर भो अपनी राजधानी वापस पहुँच गया। थोड़े दिनों बाद मोर जाफर और रामनारायन दोनों पर एक और नई आफ़त टूटी। जिस तरह मीरन केवल शाहजाद अला. नाम के लिए बिहार का नवाब बना दिया गया गौहर की बिहार था उसी तरह एक असे से दिल्ली सम्राट के ज्येष्ठ पुत्र को नाम मात्र के लिए बंगाल, बिहार और उड़ीसा का सूबेदार कहा जाता था । वास्तव में शहज़ादे का यह खिताब केवल एक मान सूचक खिताब था और मुर्शिदाबाद के क्रियात्मक सूबेदार सम्राट के अधीन सूबेदारी के सब फ़र्ज़ अदा करते थे। इस समय शहज़ादा अलोगोहर अपने खिताब को सार्थक करने के लिए सेना सहित बंगाल की ओर बढ़ा । इसमें सन्देह नहीं, बंगाल को हाल की बगावत, अंगरेजों और मीर जाफ़र के अन्याय और प्रजा को शोरुजनक हालत इन सब की खबर सम्राट के दरबार तक पहुँच चुकी थी, और शहजादे के आने का इन बातों के साथ अवश्य कुछ न कुछ सम्बन्ध था। जो हो, मीर जाफ़र शहज़ादे के आने का समाचार पाते हो डर गया, उसने क्लाइव से मदद चाही। क्लाइव फ़ौरन एक जबरदस्त फ़ौज और मीरन को साथ लेकर मुर्शिदाबाद से पटने की ओर बढ़ा। शहज़ादा उस
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