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भारत में अंगरेज़ी राज

१२४ भारत में अंगरेजो राज अंगरेजों के हाथों में खेल गया । सम्राट की सेना ने उसे हरा दिया। और जख्मी करके पीछे हटा दिया और पटने का मोहासरा शुरू कर दिया । १५ फरवरी को केलो और मीरन की सेनाएँ पटने पहुंची सम्राट और अंगरेजों में गुप्त पत्र-व्यवहार जारी था। सम्राट की सेना मोहासरे से हट गई । २२ फरवरी को दिल्ली और बंगाल की सेनाओं में थोड़ी सी लड़ाई हुई जिसमें मीरन के कुछ चोट आई। न जाने अंगरेजो ने सम्राट को क्या समझाया कि सम्राट की सेना अब खुद बखुद वहाँ से मुड़कर मुर्शिदाबाद की ओर बढ़ी। मीरन सम्राट की सेना का पीछा करने के खिलाफ था, किन्तु केलो ने २६ फरवरी सन् १७६० को उसे पटना छोड़ने पर मजबूर किया। निस्सन्देह मीरन और मीर जाफर दोनों को एक दर्जे तक मजबूरन् अंगरेजों के इशारे पर चलना पड़ता था। चार अप्रैल को केलो और मोरन की सेना मीर जाफ़र की मेना से आ मिली । ६ अप्रैल को जब कि दिल्ली और बंगाल की सेनाएँ एक दूसरे के अत्यन्त निकट आ गई, केलो ने मीर जाफर पर फिर जोर दिया कि आप सम्राट की सेना पर हमला कीजिए, किन्तु मीर जाफ़र और मीरन ने मंज़र न किया। तीन दिन के अन्दर सम्राट् की सेना फिर उसी रास्ते बिहार की ओर लौट गई। कम्पनी के डाइरेक्टरों के एक सरकारी पत्र में लिखा है कि कुछ अंगरेजी हो ने करनल केलो पर यह इलज़ाम लगाया था कि इस मौके पर केलो ने गुप्त तरीके से सम्राट को मरवा डालने का भी उद्योग किया था, किन्तु वह सफल न हो सका।