पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३९३

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१३५
मीर जाफ़र

मीर जाफ़र १३५ में से किसी में सम्राट के पैर न जमने दिए जावे, श्रीहट्ट जिले में चूना खरीदने के लिए अंगरेजों को विशेष सुविधाएँ दी जावें । मीर कासिम अधिकार मिलने ही इस उपकार के बदले में वन्सीटार्ट को पाँच लाख रुपए, हॉलवेल को दो लाख सत्तर हजार और इसी तरह कौन्सिल के अन्य सदस्यों में से किसी को ढाई लाख, किसी को दो लाख इत्यादि कुल मिलाकर बीस लाख रुपए दे और इनके अलावा पाँच लाख रुपए कम्पनी को बतौर कर्ज दे। गवरनर वन्सीदाद उसकी कौन्सिल के अन्य सदस्यों और मीर कासिम, सब के इस सन्धिपत्र पर दस्तखत हो गए । यह वही मीर कालिम था जिसे मीर जाफर ने अपना विश्वस्त प्रतिनिधि बनाकर अंगरेजों के पास वातचीत के लिए भेजा था। ३० सितम्बर को सौदा पक्का करके मीर कासिम कलकत्ते से मुर्शिदाबाद के लिए रवाना हुआ ! २ अक्तूबर मीर जाफर के न को मीर जाफ़र पर राव डालने के लिए गवरनर अचानक हमला वन्लीटार्ट और उसके कुछ साथी कलकत्ते से चले । मुर्शिदाबाद भागीरथी के एक ओर और कासिम बाज़ार को कोठी दूसरी ओर थी। १५, १६ और १८ अक्तूबर को वन्सीटार्ट और मीर जाफ़र में बातचीत हुई। मीर जाफर अंगरेजों की नई तजवीजें और मीर कासिम के इरादों का हाल सुनकर घबरा गया। उसने मीर कासिम के हाथों में शासन के अधिकार सौंपने से इनकार कर दिया। मीर कासिम और अंगरेजों के लिए अब पीछे हट सकना असम्भव था । २० अलवर को सवेरे सूर्य निकलने महल पर