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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत ले अंगरेजी राज से कुछ घंटे पहले कम्पनी की सेना ने अचानक मीर जाफर को महल में सोते हुए जा घेरा। मीर जाफ़र की उस समय की मानसिक स्थिति को मालेसन ने बड़े सुन्दर शब्दों में चित्रित करने का यत्न किया है। वह लिखता है :- "निस्सन्देह उस दिन प्रभात की महत्वपूर्ण घडी में बूढ़े नवार को सौन साल में कुछ अधिक पहले के उस दिन को अवश्य मीरजाक्षर कर याद आई होगी, जब कि प्लासी के मैदान मे, इन्हीं दुःख और पश्चात्ताप अंगरेजों के साथ गुप्त समझौता करके उस मसनद के लिए, जिसे अब उसका एक दूसरा सम्बन्धी उसी तरह के उपायों द्वारा उसके हाओं से छीन रहा था, उसने अपने स्वामी और आत्मीय सिराजुद्दौला के साथ विश्वासघात किया था। मीर जाफर अवश्य इस समय सोचता होगा कि- 'जिस सत्ता को मैंने इतने नीच और कलंकित उपाय से प्रास किया था उससे मुझे क्या लाभ पहुँचा ? मैंने सिराजुद्दौला से उसका महल छीना ! उस महल में तीन साल तक नवाबो की ! किन्तु इन तीन साल के अंदर जो यातनाएं मुझे सहनी पड़ी उनके सामने मेरे जीवन के पहले ५८ साल के तमाम कष्ट कोके हैं ! वे लोग, जिनके हाथ मैंने अपना मुल्क बेचा था, आज मुझे डर दिखला रहे हैं ! यदि प्लासी में मैं अपने उस बालक सम्बन्धी के साथ वादार रहा होता, जिसने अत्यन्त हसरन भरे शब्दों में मुझसे अपनी पगड़ी की लाज रखने की प्रार्थना की थी तो इस समय मेरी स्थिति क्या होती ? निस्सन्देह जो गुस्वान विदेशी प्लासी से अब तक मुझ पर हुकुम चलाते रहे और जो अब मुझे मसनद से उतारने की धमकी दे रहे हैं, यदि प्लासी के मैदान में मैंने उनके नाश के मुख्य साधन बनने का यश प्राप्त कर