पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१५०
भारत में अंगरेज़ी राज

१५० भारत में अंगरेजी गज अब मीर कासिम ने यह नमाम इलाका हमेशा के लिए कम्पनी को सौंप दिया और वहाँ के जमींदार को अंगरेजों के अधीन कर दिया । जब यह नया परवाना राजा तिलकचन्द के पास पहुँचा तो उले दुख होना स्वाभाविक था । उसने गवरनर वन्सीटार्ट को अपनी जमींदारी की शोचनीय अवस्था की फिर से इसला दी ओर अपने यहाँ की मालगुजारी का मद हिसाब भेज दिया। वन्लीटार्ट ने किसी तरह उसकी मदद न की और न कम्पनी के सिपाहियों के अत्याचार बन्द हुए। मजबूर वधमान और बार होकर कहा जाता है राजा तिलकचन्द ने बीरभूम भूम पर कम्पनी के राजा के साथ मिलकर अंगरेजी और मीर का कब्ज़ा कासिम दोनों से लड़ने के लिए फौज जमा करना शुरू किया। इस पर कलकत्तं की कोसिल ने "वर्धमान और मेदनीपुर के इलाकों पर कब्जा करने के लिए" कप्तान व्हाइट के अधीन कुछ संना बर्धमान भेजी। राजा तिलकचन्द के एक पत्र से मालूम होता है कि इस सेना ने मो मार्ग भर में असहाय ग्रामवासियों पर तरह तरह के जुल्म किए, उन्हें खूब लूटा और खूब खून बहाया। ___२८ दिसम्बर सन् १७६० को कप्तान व्हाइट की सेना और वर्धमान के राजा की सेना में लड़ाई हुई, जिसमें राजा की संना हार गई। अंगरेजी सेना का एक हिस्सा बीरभूम की राजधानी नागौर पर कब्जा करने के लिए भेज दिया गया। वहाँ का राजा अपनी राजधानी छोड़कर पहाड़ों की ओर भाग गया और वर्धमान तथा नागौर दोनों पर कम्पनी का कब्ज़ा हो गया।