पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४१२

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भारत में अंगरेज़ी राज

२५४ भारत में अंगरेजी राज न कर लिया गया हो, मुझे विश्वास है कि जगह जगह इन झंडों की मौजूदगी से नवाब की आमदनी, देश के अमन या हमारी कौम की इज्जत तीनों में से किसी को भी लाभ नहीं पहुंच सकता। x x x रास्ते में हमारे सिपाहियों के व्यवहार के खिलाफ मुझले अनेक शिकायत की गई । हम लोगों के पहुंचने ही लोग अधिकांश छोटे कस्बों और सरायों को खाली छोड कर भाग जाते थे और दुकानों का चन्द कर देते थे, क्योंकि उन्हे हमसे भी उसी तरह के व्यवहार का इर था !"* वरेहट नामक अंगरेज़ इस सम्बन्ध में हमें एक और नई बात बताता है । वह लिखता है :- ___ *उन दिनों बहुत से काल (हिन्दोस्तानी ) व्यापारी अपनी सुविधा के लिए कम्पनी के किसी नौजवान मुहरिर को धन देकर उसका नाम खरीद लते थे और उपकं नाम के 'दस्तक' के जरिए देश के लोगों को तंग करते और उन पर जुल्म करते थे । इस ज़रिए से इतनी ज्यादा आमदनी होने लगी कि कई नौजवान ( अंगरेज़ ) मुहरिर १५ हजार और २० हजार रुपए साल खर्च कर सकते थे. नफीस कपड़े पहनते थे और राज़ अच्छे से अच्छा खाना उड़ाते थे।" वह आगे चल कर लिखता है :- P

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