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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४११

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१५३
मीर का़सिम

मीर कासिम १५३ सब जगह पाता जाना था, जब कि और सब व्यापारियों का अपने माल पर भारी महसूल देना पता था । नतीजा यह हुआ कि देश का सारा व्यापार तेजी के साथ कम्पनी के मुलाजिमों के हाथों में आने लगा और सरकारी आमदनी का एक स्त्रोत बिलकुल सूखने लगा। जब महसूल जमा करने वाला कोई सरकारी कर्मचारी कम्पनी के दस्तक के इस दुरुपयोग पर एतराज़ करता और माल को रोकता था तो उसे गिरफ्तार करके पास की अंगरेज़ी कोठी में पहुंचा देने के लिए सिपाहियों का एक दस्ता भेज दिया जाता था।* अंगरेजों की इस नाजायज तिजारत के साथ जो जो जुल्म और जबरदस्तियाँ होती थीं उनकी गवाही व्यापार सम्बन्धी अनेक अंगरेज लेखकों के बयानों से मिलती है। अत्याचार जहाँ जहाँ कोई अंगरेज बैठकर इस तरह व्यापार करता था, वहाँ वहाँ ही अंगरेजी झंडा और कम्पनी के कुछ सिपाही उनके साथ रहते थे। वारन हेस्टिग्स २५ अप्रैल मन् १७६२ के एक पत्र में लिखता है :...... "जहाँ जहाँ मैं गया हूँ वहाँ वहाँ अनेक अंगरेज़ी झंडे लहराते हुए देखकर मैं चकित रह गया हूँ x x x चाहे किसी भी अधिकार से ऐसा क्यों

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