भारत में अंगरजी राज युद्ध बल पर और अंगरेज़ अपनी कूटनीति के बल पर कामयाबी की उम्मीद कर रहे थे। उस समय देश को इस विपजाल से निकालने का केवल एक हो उपाय हो सकता था। वही उपाय राजा नन्दकुमार को सूझा और ज़ाहिर है कि दिल्ली और पूना के कुछ नीतिज्ञ भी नन्दकुमार के इस विचार से पूरी सहानुभूति रखते थे। सम्राट आलमगीर दूसरे के समय में वज़ीर ग़ाज़ीउद्दीन ने मराठों को सम्राट को सहायता के लिए दिल्ली पानीपत का तीसरा नलवाया। उस समय के पेशवा ने अपने साई लडाई में मराठों रघुनाथ राव ( राघोबा ) को सम्राट के अाज्ञा ___ का नेतृत्व पालन के लिए एक बड़ी सेना सहित दिल्ली भेजा। सम्राट और पेशवा के बीच प्रेम कासम्बन्ध कायम हो गया। रघुनाथ राव ने अपनी सेना सहित और आगे बढ़कर अहमदशाह अब्दाली के नायब के हाथों से पञ्जाव विजय कर लिया और एक मराठा सरदार को दिल्ली सम्राट के अधीन वहाँ का सूबेदार नियुक्त कर दिया। राघोवा दक्खिन लौट आया। मराठों की शक्ति इस समय शिखर पर पहुँची हुई थी। किन्तु इस अन्तिम घटना ने उनके विरुद्ध अहमदशाह अब्दाली का क्रोध भड़का दिया और सन् १७५९ ई० में एक ज़बरदस्त सेना लेकर वह पञ्जाब पर फिर से अपना राज कायम करने और मराठों का विश्वास करने के लिए अफगानिस्तान से निकल पड़ा। सदाशिव भाऊ २० हजार सवार, १० हजार पैदल और तोप खाना लेकर अहमदशाह के मुकाबले के लिए पूना से रवाना हुआ।
पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४२०
दिखावट