APPAN मीर कासिम पेशवा का पुत्र विश्वासराव भी सदाशिव के साथ था। मार्ग में होलकर और सीधिया की सेनाएँ सदाशिव से या मिली । राजपूत राजाओं ने सहायता के लिये अपने सवार भेजे । भरतपुर का जाद राजा ३०,००० सना लेकर स्वयं सदाशिव से आ मिला । साम्राज्य की राजधानी दिल्ली में सदाशिव का खूब स्वागत हुअा। अवध का नवाब शुजाउद्दौला अपनी सेना और सम्राट की सेना दोनों को लेकर सदाशिव की मदद के लिये तैयार हो गया। एक बार मालूम होता था कि भारत के सब हिन्दू और मुसलमान विदेशियों से अपने देश की रक्षा करने के लिए कमर कसके मैदान में उतर आए। किन्तु सदाशिव नाऊ उसमेन परीक्षा के समय सच्चा नीतिज्ञ सावित न हो सका । गर्व ने उसकी दूरदर्शिता मराठा सेनापति को पर परदा डाल दिया। मार्ग में ही उसने कई अदूरदर्शिता और मराठा सरदारों को अपने अनुचित व्यवहार से पर जय नाराज कर लिया। राजा भरतपुर को भी वह सन्तुष्ट न रख सका। दिल्ली के अंदर उसका बर्ताव और भी बुरा रहा। किले में घुसते ही बहुत सा शाही सामान उसने अपने कब्जे में कर लिया। दीवान खास की सुन्दर कीमती चाँदी को छत को उखड़वा कर और गलवा कर उसने उससं १७ लाख रुपये ढलवा लिए। यह भी कहा जाता है कि वह इस समय विश्वासराव को दिल्ली के तख्त पर बैठाना चाहता था। सदाशिव भाऊ की इस संकीर्ण और घातक नीति का नतीजा यह हुआ कि उसके मुसलमान मित्रों के दिल उसकी ओर से फिर गए । अवध का नवाव बजार
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