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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज इसके बाद केवल अंगरेज वाकी रह गए, और विविध सूवों के निर्बल तथा अदूरदर्शी शासकों को एक दूसरे से तोड़ फोड़ कर अपने लिए अनन्य राजनैतिक प्रभुत्व का मार्ग बना लेना अब उनके लिए काफ़ी लग्ल हो गया। श्रव हम पानीपत से हट कर फिर अपने असली इतिहास की . ओर आते हैं। सम्राट शाहअालम दूसरा अभी म श्री तक बिहार प्रान्त में था। सितम्बर सन् १७६० ही ____ अंगरेज़ में अंगरेज शाहबालम को अपनी ओर फोड़ने का निश्चय कर चुके थे। बंगाल, बिहार और उड़ीसा के अनेक जमींदार जो नई बगावत के खिलाफ थे, मम्राट के झंडे के नीचे जमा हो रहे थे। अंगरेजों ने अब जिस तरह हो बिहार पहुँच कर सम्राट से मामला तय कर लेना जरूरी समझा । करनल केलो की जगह मेजर कारनक बंगाल की सेनाओं का प्रधान सेनापति था । जनवरी सन् १७६१ में कारनक पटने पहुँचा । कम्पनी की सेना के अलावा राम नारायन की सेना और मुर्शिदाबाद की सेनाएँ भी कारनक के साथ थी। गया मौनपुर के पास सम्राट की सेना और इन सनाओं का आमना सामना हुआ, अन्त में समझौते की बातचीत होने लगी। सम्राट शाहबालम कारनक को साथ लेकर पटना पाया। मीर कासिम पटने में मौजूद था । मीर कासिम ने हाज़िर होकर पिछले खिराज के बदले में एक बहुत बड़ी नकद रकम सम्राट की भेंट की और अपने यहाँ की सरकारी टकसाल में शाहआलम दूसरे के नाम के सिक्के ढलवाने का वादा किया। यही वादा कलकत्ते की टक-