मीर कासिम "कहा जा सकता है कि पानीपत की लड़ाई के साथ साथ भारतीय इतिहास का भारतीय युग समाप्त हो गया । इतिहास के पढने वाले को इसके बाद से दूरदर्दी पच्छिम से श्राए हुए व्यापारी शासकों की उन्नति से ही सरोकार रह जाता है।" निस्सन्देह जिस तिकोनिया संग्राम का हम ऊपर जिक्र कर चुके हैं, उसकी तीन शक्तियों में से अफ़सानों को अब पानीपत का और आगे बढ़कर दिल्ली सम्राट के निर्बल हाथों परिणाम से भारतीय साम्राज्य की बाग छीनने का साहस न हो सकता था। मराठों की कमर टूट चुकी थी और वे अंगरेजों के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने के लिए अब बंगाल तक पहुँचने के नाकाबिल थे। इस तरह नन्दकुमार और उसके साथियों की आशाओं पर पानीपत ने पानी फेर दिया। एक अंगरेज लेखक साफ़ लिखता है :- "पानीपत की लडाई से मराठा संघ को जो थोड़ी देर के लिए धक्का पहुँचा उसकी वजह से मराठे अंगाल पर हमला करने से रुक गए। इस हमले में शायद शुजाउद्दौला और शाह आलम मराठों के साथ मिल जाते और मुमकिन है कि ये लोग अंगरेज़ कम्पनी की उस सत्ता को, जो अभी उस समय तक कमजोर थी और अनेक कठिनाइयों से घिरी हुई थी, सफलता के साथ उखाड़ कर फेंक देते "
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