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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज सहित मेरे साथ दिल्ली चले। इसके बदले में वह कम्पनी को तीनों प्रान्तों का दीवान बना देने के लिए भी तैयार था। किन्तु अंगरेजों के पास उस समय इस काम के लिए काफ़ी फ़ौज न थी। बंगाल के अन्दर भी वे अपने अनेक शत्रु पैदा कर चुके थे। इसलिए वे सम्राट की इस इच्छा से उस समय लाभ न उठा सके और जून सन् १७६१ में सम्राट शाहालम पटने से दिल्ली की ओर लौट गया। अव अंगरेजों को मराठों का डर न रहा था। शाहबालम से किसी तरह निपटारा हो गया। बंगाल का अंगरेज़ों का राजा मैदान फिर कम्पनी के मुलाजिमों की लूट और रामनारायन से जबरदस्तियों के लिए खाली हो गया। इस बार विश्वासघात उनका पहला वार राजा रामनारायन पर हुआ। अंगरेजो हो के बयान के अनुसार रामनारायन एक अत्यन्त योग्य शासक था। वह बहुत धनवान भी मशहूर था और शुरू से अंगरेजों का "पका हितसाधक' रह चुका था। किन्तु अब मीर कासिम और अंगरेज़ दोनों को रुपए की ज़रूरत थी। अपनी सेना के हाथों लोगों को पकड़वा पकड़वा कर मीर कासिम के सामने पेश करना और उनस रकम वसूल करना अंगरेजों का इस समय एक खास पेशा था। यह इलज़ाम लगाकर कि रामनारायन के जिम्मे सूबेदार की बकाया निकलती हैं, गवरनर वन्सीटॉर्ट ने रामनारायन को छल से गिरफ्तार कर मीर कासिम के हवाले कर दिया। इसके कुछ ही समय पहले वन्सीटार्ट ने कारनक को लिखा था कि तुम्हें नवाब के हर तरह के अन्यायों से रामनारायन की रक्षा करनी चाहिए । कारनक ने सन्