मीर कासिम कायरता और अयोग्यता को अच्छी तरह महसूस कर लिया था। उसकी श्रात्मा यह देखकर दुखी थी कि बंगाल का सूबेदार विदेशियों के हाथों की केवल एक कठपुतलो रह गया था। इसीलिए मीर कासिम ने जिस तरह हो सके, सूबेदार की सत्ता को फिर से कायम करने का संकल्प किया । मीर कासिम और अंगरेजों में जो गुप्त समझौता हुआ था वह केवल मीर कासिम को मीर जाफ़र का प्रधान मन्त्री बनाने का हुआ था और मीर कासिम को श्राशा थी कि प्रधान मंत्री की हैसियत से मैं सूबेदारी की सत्ता को फिर से कायम कर सकूँगा। किन्तु जव एक बार यह सब मामला निर्बल और मशङ्क मीर जाफर पर प्रकट कर दिया गया और मीर जाफ़र को मोर कासिम पर भरोसा न हो सका, तो फिर मीर कासिम के लिए पीछे हट सकना नामुमकिन हो गया था। इसमें भी शक नहीं कि मीर कासिम ने मसनद पर बैठते ही बंगाल की हालत को सुधारने की जी तोड़ कोशिश की और इस कोशिश में उसे एक दरजे तक आश्चर्यजनक सफलता मिली। माल और खजाने के महकमों में उसने कई सुधार किए । सन् . १७६२ तक उसने न केवल अपनी फौज की मीर कासिम के तमाम पिछली तनखाहों को अदा कर दिया और अंगरेजों की एक एक पाई चुकता कर दी, बल्कि शासन का इतना सुन्दर प्रबन्ध किया कि सूवेदारी की आमदनी सालाना खर्च से बढ़ गई । अंगरेजों पर उसे शुरू से ही विश्वास
- The Dressure Battles of India ? 128
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