लेखक की कठिनाइयां १५ तक बिल्कुल ग़लत मिलते हैं। जिस हैदरअली ने होश सँभालने के बाद से कभी डाढी या सँछ नहीं रक्खी उसका डाढ़ी और मूंछों वाला चित्र अनेक अंगरेज़ी इतिहासों मे मिलता है ! कैसल की 'हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया' में नो अत्यन्त प्रामाणिक मानी जाती है, हमने सम्राट बहादुरशाह का एक चित्र देखा, जिसके पैरों में राजपूती जूता, डाढी चढ़ी हुई और धोती मारवाड़ के तर्ज पर बँधी हुई है ! सच यह है कि जो पुस्तकें भारत के इतिहास पर स्कूलों और कॉलेजों में पढाई जाती हैं, उनमें तारीखों, राजाओं के नामों या अत्यन्त मोटी मोटी घटनाओं को छोड़ कर बाकी बातों मे से कम से कम १० फी सदी का मूल्य एक साधारण उपन्यास से अधिक नहीं है, और वह भी निहायत खतरनाक उपन्यास, जिसका असर कौम के बढ़ते हुए दिमागों पर अत्यन्त जहरीला पड़ता है। किराये के लेखक निस्सन्देह कुछ भारतीय विद्वानों के लिम्वे हुए इसी समय के ऐति- हासिक वृत्तान्त एक दरजे तक ज़्यादा सच्चे और विश्वसनीय हैं । किन्तु एक तो इस तरह के वृत्तान्त हैं ही बहुत कम और फुटकर, और दूसरे इनके सम्बन्ध में हमें एक और गहरी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। सारसी का अन्य ‘सीअरुल मुताख़रीन' भारतीय मुग़ल साम्राज्य के अन्तिम दिनों का खासा विश्वस्त इतिहास माना जाता है और है भी। फिर भी इस ग्रन्थ का विद्वान रचयिता सय्यद गुलाम हुसेन अपने ग्रन्थ में स्व:कार करता है कि सम्राट शाहआलम और अंगरेजों के संग्रामों के दिनों में उसे लोम देकर अंगरेजों ने अपनी ओर मिला लिया था। निस्संदेह
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