पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४३६

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भारत में अंगरेजी राज बोलते थे या महसूल माँगते थे तो पहले की तरह उन पर मार पड़ती थी। मीर कासिम ने वन्सीटॉर्ट को ५ मार्च सन् १७६३ के पत्र में फिर लिखा कि :- "तीन साल से सरकार को अंगरेज़ों से एक भी पाई या एक भी चीज़ नहीं मिली, इसके खिलाफ सरकार के कर्मचारियों से अंगरेज़ बराबर जुरमाने और हरजाने वसूल कर रहे हैं।" मीर कासिम ने बार बार शिकायत की किन्तु कोई फल न हुआ। विदेशी व्यापारियों का बिना महसूल मीर कासिम का व्यापार करना और देशी व्यापारियों से भारी चुंगी उठवा देना महसूल वसूल किया जाना दोनों बराबर जारी रहे । इस अन्याय द्वारा देशी व्यापारियों का अस्तित्व ही मिटता जा रहा था। अन्त को मजबूर होकर और देशी व्यापारियों को जीवित रखने का और कोई उपाय न देख २२ मार्च सन् १७६३ को मीर कासिम ने अपनी सूवेदारी भर में चुंगी की तमाम चौकियों के उठवा दिए जाने का हुकुम दे दिया और सूवे भर में एलान कर दिया कि आज से दो साल तक किसी तरह के तिजारती माल पर किसी से किसी तरह का भी महसूल न लिया जाय । मीर कासिम की सालाना आमदनी को इससे जबरदस्त धक्का पहुँचा, किन्तु देशी व्यापारियों को अन्याय से बचाने और उन्हें जिन्दा रखने का मीर कासिम को और कोई उपाय न सूझ सकता था। इस आज्ञा से मीर कासिम की बेबसी और उसकी प्रजा पालकता दोनों प्रकट होती हैं।