पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१७७
मीर का़सिम

मीर कासिम १७७ फीसदी महसूल दिया करें और हिन्दोस्तानी व्यापारी इन्हीं तमाम चीज़ों पर २५ फीसदी महसूल दिया करें। भारतीय व्यापारियों के साथ यह घोर अन्याय था, फिर भी मीर कासिम ने शान्ति बनाए रखने की इच्छा से उसे स्वीकार कर लिया। वन्सीटॉर्ट और हेस्टिंग्स दोनों ने सन्धिपत्र पर हस्ताक्षर किए और दोनों ने कलकत्ता कौन्सिल के नाम अपने १५ दिसम्बर के पन्न में इस सन्धि की 'न्याय्यता' और 'उदारता' और मीर कासिम की _ 'सच्चाई' तीनों की साफ़ शब्दों में तारीफ़ की है। वन्सीटॉर्ट ने मीर कासिम से वादा किया कि कलकत्ते पहुंच कर मैं कम्पनी और सरकार के बीच के सब मामले तय कर दूंगा। किन्तु कलकत्ते वापस पहुँचते ही बजाय 'सब मामला तय करने के गवरनर वन्सीटॉर्ट ने कम्पनो और उसके भादमियों की धींगाधींगी को पहले की तरह जारी रखने के लिए जगह जगह नई फौजे रवाना कर दी। इसके साथ साथ कलकत्ते की अंगरेज़ कौन्सिल ने अपना बाज़ाब्ता इजलास करके फ़ौरन तमाम अंगरेज़ी कोठियों और उनके गुमाश्तों के पास यह खुली हिदायतें भेज दी कि मुंगेर की शर्तों पर हरगिज़ कोई अमल न करे और यदि नवाब के कर्म- चारी अमल कराने पर जोर दें तो उनकी खूब गत बनाई जाये। इसी इजलास में यह भी कहा गया कि मुंगेर की सन्धि पर हस्ताक्षर करने के लिए वन्सीटॉर्ट ने नवाब मीर कासिम से सात लाख रुपए रिशक्त ली थी। जो हो, सन्धि पत्र की स्याही अभी सूखने भी न पाई थी कि सन्धि तोड़ दी गई। नवाब के कर्मचारी यदि कोई १२