भारत में अंगरेजी राज अदवानाला ही विदेशी व्यापारियों के विरुद्ध बंगाल के भारतीय सूबेदारों की श्राशा का अन्तिम आधार था। ऊदानाला को ४ सितम्बर सन् १७६३ की रात को वह आशा , पराजय सदा के लिए टूट गई । जो चीज़ सिराजुद्दौला के लिए लासी सावित हुई वही मीर कासिम के लिए ऊदवानाला साबित हुआ,और दोनों जगह करीब करीब एकही से उपायों द्वारा अंगरेज व्यापारियों ने बंगाल की शाही सेना पर विजय प्राप्त की। ऊदवानाला की पराजय का एक सबब यह भी बताया जाता है कि उस रात को मीर कासिम खुद अपनी सेना के साथ दुर्ग के अन्दर मौजूद न था । अंगरेज़ इतिहास लेखक वोल्ट्स की राय है कि यदि मीर कासिम स्वयं अपने अफसरों को सावधान रखने और अपने सैनिकों को उत्साह दिलाने के लिए मौजूद होतातो-"शायद हो नहीं बल्कि वहुत ज़्यादा मुमकिन है कि उस दिन से अंगरेज़ कम्पनी के पास इन प्रान्तों में एक फुट जमीन भी न रह जाती।"* ऊदवानाला की पराजय से मीर कासिम को बहुत बड़ा धक्का ___लगा, किन्तु उसने विदेशियों की अधीनता कुछ खास खास स्वीकार न की और न वह इतनी जल्दी हिम्मत विश्वासघातक हारा । ऊदवानाला के बाद उसने मुंगेर के किले को सँभाला। यह किला भी अत्यन्त मजबूत था । उसकी रक्षा का ___1t is more than probable that, the English Company would nave been left, trom that day, without a single foot of ground in thes) Provinces"--Consideration on Indian Affasrs, By Bolts, p 43
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