पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४७१

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फिर मीर जाफर

फिर मीर जाफर २०१४ दिया और मीर जाफर को पटने से कलकत्ते चुलदा लिया। कठ- पुतलो तथा बेबस मीर जाफर को अंगरेजों की आज्ञा माननी पड़ी। मेजर कारनक की जगह मेजर मनरो अब पटने की सेना का प्रधान सेनापति नियुक्त हुआ। जुलाई मास में मानरो को रोहतास वह पटने पहँचा। अंगारेजों को डर था कि यदि के किले पर कब्ज़ा लड़ाई देर तक चली तो सम्भव है मराठों और अफगानों की सेनाएँ शुजाउद्दौला की मदद के लिए आ जाये। इसलिए मेजर मनरो को आज्ञा दी गई कि तुम शुजाउद्दौला की सेना पर हमला करके लड़ाई का शीघ्र अन्त कर डालो। मालूम होता है मेजर मनरो के आते ही कम्पनी के कुछ हिन्दोस्तानी सिपाही मीर जाफ़र के साथ अंगरेजो के इस अन्याय को देखकर था किसी दूसरी वजह से अंगरेजों के खिलाफ बगावत कर बैठे। मेजर मनरो ने फौरन बिना किसी तहकीकात या पूछ ताछ के तमाम बागियों को तोप के मुंह से उड़वा दिया। ___ इसके बाद मेजर मनरो ने रोहिताश्व (रोहतास ) के किले पर कब्जा किया। इस किले के विषय में, सय्यद गुलामहुसेन लिखता है कि मेजर मनरो ने आते ही डॉक्टर फुलरटन की मारफ़त सय्यद गुलामहुसन को पत्र लिखा कि-"यदि आए रोहिताश्व का किला अंगरेजों के हवाले करने की तदबीर कर सके तो आप अंगरेजों की मित्रता और कृतज्ञता के हकदार होंगे।" सय्यद गलामहुसेन लिखता है कि-"इस सूचना के मिलने पर मैंने राजा साहूमल से बातचीत की।" राजा साहूमल रोहिताश्व के किले का १४