पुस्तक प्रवेश है कि भारत के इन मुसलमान शासकों में सिवाय अय्याशी, लूट मार और धर्मान्धता के और कोई विशेषता न थी । यहाँ तक कि बड़े से बड़े या अच्छे से अच्छे मुगल बादशाहों को हिन्दुओं और हिन्दोस्तान के लिए अधिक से अधिक 'मीठी छुरी' कह कर बयान किया जाता है। हमें विश्वास दिलाया जाता है कि मुसलमानों ने कोई भी उपकार भारत पर नहीं किया, उनके शामन में कोई बात तारीफ़ की न थी, उन्होंने भारत के राष्ट्रीय जीवन को हर तरह से नुकसान पहुंचाया और आज तक हिन्दुओं और मुसलमानों में कभी भी वास्तविक मेल न हुआ और न हो सकता है । जो इतिहास स्कूलों में पाए जाते हैं उनमें दिखाया जाता है कि अंगरेजों के कर लेना पड़ा और उसने कहा भी~ I trust that this false report will not again be revived.' यानी 'मैं विश्वास करता हूं कि इस झूठी अफवाह को अब कोई न दोहराएगा। इसी तरह के और भी बेशुमार झूठ उन दिनों जरमनों के विरुद्ध अंगरेजो और मित्र राष्ट्रों की ओर से प्रकाशित होते रहते थे। ऐसी ही एक दूसरी पुस्तक "फाल्सहुड इन बार टाइम इंगलिस्तान को पोलिमेण्ट के मेम्बर आर्थर पॉन्सन्वी ने हाल में प्रकाशित की है। पॉन्सन्बी इगलिस्तान के मन्त्रिमण्डल में वैदेशिक विभाग का उपमन्त्री रह चुका है। इस पुस्तक की आलोचना करते हुए पार्लिमेण्ट के एक दूसरे प्रसिद्ध सदस्य विलफ्रड वेलॉक ने अगस्त सन् १६२८ के "विशाल-भारत" में लिखा है- "इस पुस्तक में यह बात अकाट्य प्रमाणों द्वारा सिद्ध की गई है कि पिछले महायुद्ध का सञ्चालन झूठ और फरेब के ज़रिये किया गया था
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