पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४९

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लेखक की कठिनाइयां

लेखक को कठिनाइयों आने से पहले भारत में चारों ओर कुशासन और अराजकता फैली हुई थी, और पाए दिन आपसी लड़ाइयाँ होती रहती थीं, अंगरेज़ों ने, जो उन समय भारतवासियों से कहीं अधिक सभ्य थे, भारत में आकर शान्ति और सुशासन कायम किया और देश को सभ्यता की ओर ले जाना शुरू किया। इन्हीं सब वातों के आधार पर और वर्तमान अंगरेज़ी सत्ता के सच्चे रूप को हमसे छिपा कर हमें यह यकीन दिलाया जाता है कि अंगरेजों का भारतीय शासन भारतवासियों के लिए एक बहुत बड़े सौभाग्य की चीज़ है और हमारी सारी भावी उन्नति तथा देश की शान्ति अंगरेजी शासन के इस देश में बने रहने पर निर्भर है । यदि आज दुर्भाग्यवश अंगरेज़ी शासन भारत से मिट जाय तो सम्भव है कि या तो पश्चिमोत्तर की ओर से कोई दूसरी शक्ति श्राकर भारत पर कब्जा कर ले या हिन्दू और मुसलमान एक दूसरे से लड लड़ कर देश को फिर वरवादी की ओर ले जायें ! इन सब बातों के जवाब में हम यह दिखलाने का प्रयत्न करेंगे कि और प्रारम्भ से लेकर अन्त तक युद्ध के उद्देश्यो के विषय मे ससार की जनता को धोखे मे रक्खा गया।" यदि ससार में कोई युद्ध ऐसा हुआ है. जो ऊपर से देखने मे धर्म के भावों से प्रेरित मालूम होता था, तो वह पिछला महायुद्ध था ! कम से कम मिन्न दल वाले यही कहते थे कि हम धार्मिक युद्ध कर रहें हैं , मित्रो की ओर से यह एलान किया गया था कि हम लोग छोटी छोटी जातियों की स्वाधीनता के लिए और सन्धियों की पवित्रता की रक्षा के लिए युद्ध कर रहे हैं । हमारा उद्देश सैनिक शासन ( Militarism ) को दूर करना है ! "कैसी धोखेबाज़ी थी ! कैसा पाखण्ड था ! कैसा झूठ था!"