२१८ भारत मे अगरेजी राज सूबेदार मानने से इनकार किया, जब तक कि उससे एक नई सन्धि पर दस्तखत न करा लिए । इस नई सन्धि की मुख्य शर्ते ये थीं:- (१) नवाब नजमुद्दौला 'नायव सूबेदार' का एक नया ओहदा कायम करे. नायव सूवेदार नवाब के नाम पर शासन का सारा काम करे, और अंगरेजों का एक खान आदमी मोहम्मद रज़ॉ खाँ इस नए श्रोहद पर नियुक्त किया जाये। (२) माल के महकमे में बिना कलकत्ते की अंगरेज़ कौन्सिल की रजामन्दी के जवाब न किसी को बरखास्त करे और न कोई नया आदमी नियुक्त करे। (३) कम्पनी को फौज के खर्च के लिए पाँच लाख रुपए माहवार बराबर मुर्शिदाबाद के खजाने से मिलते रहें। (४) सिवाय इतनी फ़ौज के जो सरकारी मालगुजारी वसूल करने और दरबार की इज़्ज़त कायम रखने के लिए ज़रूरी हो, नवाब और अधिक फोज अपने पास न रखे । और (५) देश भर में हर तरह के व्यापार पर अंगरेज़ों के लिए महसूल माफ़ रहे। इन शर्तों के बाद बगाल के सूबेदार की सत्ता केवल छाया मात्र रह गई । किन्तु नजमुद्दौला को ये सब शर्ते स्वीकार करनी पड़ीं, और इनके अलावा बीस लाख रुपए नकद बतौर दोस्ताने या रिशवत के स्पेन्सर और उसके साथियों की नज़र करने पड़े।यह वीस लाख की रकम गवरनर और उसकी कौन्सिल के मेम्बरों ने आपस में बॉट ली।
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