पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२२१
मीर जाफर की मृत्यु के बाद

मीर जाफ़र को मृत्यु के बाद २२१ वह उसी समय से अपनी ऊपर लिखो योजना को पूरा करने के प्रयत्नों में लग गया। सम्राट शाहआलम अभी तक इलाहाबाद में था। सम्राट और नवाब वजीर शुजाउद्दौला दोनों अंगरेजों से दबे क्लाइव का इलाहा. हए थे। बंगाल के तीनों प्रान्तों को 'दीवानी' के बाद थाना अधिकार सम्राट से प्राप्त कर लेने की अंगरेज़ पहले भी कोशिशें कर चुके थे। यही बात क्लाइव की ऊपर लिखी योजना में भी शामिल है। उसने इस काम के लिए अव सीधे इलाहाबाद पहुँचने का इरादा किया। मार्ग में सबसे पहले क्लाइव मुर्शिदाबाद ठहरा। वहाँ पर मोहम्मद रजा खां की सहायता से क्लाइक ने शुजाउद्दौला से पाँच लाख रुपए नकद बतौर नज़र के अपने नई सन्धि लिए नवाब नजमुद्दौला से वसूल किए और इस तरह का पक्का इन्तजाम कर दिया कि जिससे आइन्दा के लिए करीव क़रीब सारी अमली हुकूमत अंगरेज़ों के हाथों में आ गई और सूवेदार केवल एक नाम मात्र की चीज़ रह गया। वहाँ से चलकर क्लाइव जनरल कारनक के पास बनारस पहुँचा । शुजा- उद्दौला भी उस समय बनारस में था। शुजाउद्दौला और अंगरेजों के बीच हाल ही में सन्धि हो चुकी थी। दो अगस्त को क्लाइव की शुजाउद्दौला से भेंट हुई । उसी दिन इस हाल की सन्धि की ख़ाक परवा न करते हुए क्लाइव ने शुजाउद्दौला को फिर से लड़ाई की धमकी देकर उससे एक नई सन्धि मंजूर करा ली, जिसके अनुसार