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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजो राज नवाब वजीर ने अद इलाहाबाद और कड़ा दोनो स्थान सम्राट के लिए (?) कहकर कम्पनी को दे दिए और लड़ाई का जो हरजाना पिछली सन्धि में पचास लाख रुपए नियुक्त किया गया था उसे वढ़ाकर अब ६ लाख पाउगड यानी करीब ६० लाख रुपए कम्पनी को भर देने का वादा किया । बनारस में आगे बढ़ कर क्लाइव इलाहाबाद पहुंचा। अगस्त सन् १७६५ को उसने सम्राट शाहआलम से भेंट कम्पना का दीवानी की और उसी रोज बंगाल, बिहार और उडीला के अधिकार भवानी के अधिकार अंगरेज कम्पनी को देकर निर्वल और अदूरदर्शी शाहालम ने मुर्शिदाबाद की सूबेदारी और मुग़ल साम्राज्य दोनों की मौत के परवाने पर दस्तखत कर दिए। इसका मतलब यह था कि आइन्दा से तीनों प्रान्तों का लगान और दूसरे सरकारी टैक्ट वसूल करने और उसमें से २६ लाख रुपए सम्राट की मालगुजारी दिल्ली भेजते रहने और मुर्शिदाबाद दरबार के खर्च के लिए रकम अदा करने का काम कम्पनी के सुपुर्द हो गया । तीनों प्रान्तों का शेष शासन प्रवन्ध सूवेदार के हाथों में रहा और बचो हुई मालगुजारी कम्पनी को सम्पत्ति हो गई । इस समय से अंगालामें दो अलग अलग 'सरकारें साफ दिखाई देने लगी एक मुर्शिदाबाद की भारतीय सरकार और दूसरी कलकत्तं को अंगरेज़ सरकार । ___ इसमें सन्देह नहीं, सम्राट से इस महत्वपूर्ण परवाने के हासिल करने में बल प्रदर्शन से भी काम लिया गया। 'सीअरुल-मुताख़रीन' में लिखा है कि सम्राट और वज़ीर दोनों को-