पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२२९
मीर जाफर की मृत्यु के बाद

मीर जाफर की मृत्यु के बाद २२६ दुशमन" कहा है और उमसे धचते रहने के उपाय दर्शाप है। किन्तु लाइव जितना स्वार्थी था उतना ही चतुर और बना हुआ भी था। उसके कई पत्रों से सावित है कि जरूरत पड़ने पर वह न्यायप्रेमी और मदाचारी का बाहरी वेष बना लेना भी जानता था। इसके अलावा इस समय अंगरेजों का व्यक्तिगत लोभ इतना बढ़ गया था कि यदि उसे परिमित न किया जाता तो कम्पनी हो का चार्ग ओर से दिवाला निकल जाने का डर था। यही क्लाइव के इस लम्बे पत्र के लिखे जाने का सबब था। तिजारती माल पर महसूल वसूल करने का अधिकार अब कम्पनी को मिल चुका था। किन्तु कम्पनी के मुलाज़िमी के व्यापार सम्बन्धी अन्यायों को महसूल रोकने के बजाय क्लाइव ने इस बार नमक जैसे पदार्थ की तिजारत का ठेका, जो कि हर मनुष्य के जीवन के लिए आवश्यक है, कम्पनी के मुलाजिमों को दे दिया और उस पर कम्पनी की ओर से ३५ फीसदी महसूल लगा दिया, जिससे प्रजा के लिए यह अन्याय और भी कष्ट कर हो गया। ऐसे ही पान, तम्बाकू और इसी तरह की और अनेक चीज़ों की तमाम तिजारत बंगाल भर में अंगरेजों और उनके आदमियों के हाथों में दे दी गई । क्लाईब की यह खुली नीति थी कि नमक जैसी ज़रूरी चीज़ पर महसूल ज़्यादा और पान तम्बाकू जैसी गैर जरूरी चीज़ों पर महसूल कम रहे और तमाम महसूल लेने वाली अंगरेज़ कम्पनी रहे। नमक पर