पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/५३५

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पहला मराठा युध्द

पहला मराठा युर २६ अयोग्य बंशज सतारा के किले के अन्दर पेशवा की सेना की हिफाजत में अभी तक अपनी नाम मात्र की गद्दी कायम रक्खे हुए थे । किन्तु सारा शासन प्रबन्ध पेशवा के योग्य और प्रबल हाथों में था। पेशवा के अलावा मराठा साम्राज्य के चार मुख्य स्तम्स यानी 'महाराष्ट्र मण्डल' के चार मुख्य सदस्थ, सीधिया, होलकर, गाय- कवाड़ और भोसला थे। ये चारों चार बड़े बड़े राज्यों के स्वतंत्र शासक थे, किन्तु सब पेशवा को अपना अधिराज मानते थे। उसे वरावर खिराज देत थे और हर लड़ाई में आज्ञा मिलने पर अपनी सेनाओं सहित पेशवा की सहायता के लिए हाज़िर हो जाते थे । पहले धेशवा बालाजी विश्वनाथ ने दिल्ली सम्राट फर खसीयर के दरबार में हाजिर होकर प्रसिद्ध देश हितैषी भाइयो सय्यद अब्दुल्ला और सय्यद हुसेनअली की मदद से सम्राट से मराठा राज के लिए 'स्वराज' का परवाना हासिल किया । सम्राट ने फरमान जारी कर दिया कि इस मराठा स्वराज के अलावा दक्खिन के सूवेदार के बाकी तमाम इलाकों पर भी मराठोको 'चौथ मिला करे। पेशवा ने सम्राट की वफादारी की कलम खाई और अपनी सेना द्वारा साम्राज्य की रक्षा करते रहने का वादा किया । वास्तव में यह 'चौथ' इसी उद्देश से दी गई थी कि उससे पेशवा मुगल साम्राज्य के तमाम दक्खिनी इलाके की हिफाजत के लिए संना रख सके । इसके बाद हर पेशवा और उसके मातहत समस्त मराठा नरेश कम से कम नाम के लिए दिल्ली के सम्राट को सारे भारत का सम्राट और अपना महाराजा- धिराज मानते थे। रघुनाथ राव ने दिल्ली सम्राट ही के नाम पर