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भारत में अंगरेज़ी राज

२७: भारत म अंगरेजी राज किन्तु बरसात सर पर थी, इसलिए बागियों को पीछा करके उनका सर्वनाश किए बिना ही हरिपन्त फड़के को अपनी सेना सहित पूना लौट आना पड़ा। नतीजा यह हुआ कि राघोबा और अंगरेज़ो को गुजरात में अपन्दी साजिशो के पक्का करने का अब और अच्छा मौका मिला। भारतीय नरेशों को आपसी ईर्षा की वजह से इस तरह की साजिशों के लिए मैदान उन दिनों भारत के अंगरेजों और प्रायः हर प्रान्त में मिल सकता था। सन् १७६८ गायकवाड़ में - में गुजरात के अन्दर महाराजा दमनाजी गायक सन्धि वाड़ की मृत्यु हुई । तीन रानियों से उसके चार बेटे थे-सयाजी, गोविन्दगाव, मानिकजी और फतहसिंह । कई साल से सयाजी और गोविन्दराव मे गद्दी के लिए लड़ाइयाँ हो रही थीं। फतहसिंह चारों में सबसं चलता हुआ और सयाजी के पक्ष में था। करनल कीटिङ्ग जब राघोबा की सहायता के लिए सेना लेकर बम्बई सं गुजरात आया, उसने गोविन्दराव के विरुद्ध सयाजी के साथ सन्धि करने की कोशिश की । २२ अप्रैल सन् १७७५ को उसका एक दूत लेफ्टिनेन्ट जॉर्ज लवीबॉण्ड बातचीत के लिए फ़तहसिंह के पास पहुँचा । नौजवान फ़तहसिह ने अंगरेजों के साथ सन्धि करने से इनकार कर दिया और तिरस्कार के साथ लवीबॉण्ड को अपने यहाँ से निकाल दिया। बम्बई की कौन्सिल ने जब यह समाचार सुना तो फ़ौरन अपने खुरांट दूत मॉस्टिन को कीटिङ्ग की मदद के लिए पूना से गुजरात