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भारत में अंगरेज़ी राज

२० भारत में अंगरेजी राज वारन हेस्टिंग्स को इस समय एक खासी अच्छी तरकीब ___ सूझी। उसने सीधे कलकत्ते से अपने एक विशेष वारन हेस्टिंग्स की " दृत करनल अपटन को पूना दरवार के पास भेजा दोरुली चाले ___ और यह रुख लिया कि बम्बई की कौन्सिल ने राघोबा के साथ जो सन्धि की है और उसे जो कुछ मदद दी है, वह मेरी मरज़ी के खिलाफ और मेरी इजाजत के बिना दी गई है, इसलिए वह सन्धि नाजायज़ है और अंगरेज़ सरकार न बागी राघोबा का साथ देना चाहती है और न पेशवा सरकार से लड़ना चाहती है। वारन हेस्टिंग्स ने बम्बई सरकार को हुकुम दिया कि पेशवा दरबार से युद्ध फौरन बन्द किया जाये और करनल कीरिङ्ग और उसकी सेना को वापस बुला लिया जावे। बम्बई सरकार ने आक्षा पाते ही कोटिङ्ग और उसकी रही सही सना को सूरत वापस बुला लिया। पेशवा दरबार के मन्त्री उस समय पुरन्धर में थे, इसलिए करनल अपटन २८ दिसम्बर सन् १७७५ को पुरन्धर पहुँचा। सखाराम बापू उस समय पेशवा का प्रधान मन्त्री था। करनल अपटन के पूना जाने का उद्देश जाहिरा यह था कि बम्बई कौन्सिल के समस्त कार्यों को नाजायज़ बनाकर उनके लिए कम्पनी की ओर से दुख प्रदर्शित करे और पेशवा दरवार के साथ कम्पनी की मित्रता और वफादारी प्रकट करे। किन्तु करनल अपटन के पास वारन हेस्टिंग्स के दस्तखती दोहरे पत्र मौजूद थे। एक सखाराम बापू के नाम जिसका आशय ऊपर दिया जा चुका है और दूसरा बागी