पहला मराठा युद्ध २८५ फूठ डलवाना तरह परिचित थे। वे जानते थे कि मॉस्टिन ही अंगरेज़ो और मराठों के बीच की सारी आपत्तियों की जड़ है । उन्होंने मॉस्टिन जैसे आदमी के फिर अपने द्रवार में भेजे जाने पर एतराज़ किया, किन्तु कम्पनी के अधिकारियों ने उनकी एक न सुनी और मार्च सन् १७७७ में मॉस्टिन कम्पनी के वकील की हैसियत से पूना पहुँच गया। मॉस्टिन ने इस बार अपने गुप्त कुचक्रों द्वारा धीरे धीरे पेशवा दरबार के एक और मन्त्री मोरोबा को अपनी अंगरेज़ दूत मास्टिन मोह न ओर फोड़ लिया। उसने मोरोवा को नाना लिया। जसले मोरोवा का पूना दरबार में फड़नवीस से लड़ा दिया और नाना फड़नवीस तथा प्रधान मन्त्री सखाराम बापू में भी फूट डलवा दी। ये झगड़े यहाँ तक बढ़े कि दबार के अन्दर माना की जगह मोरोवा को मिल गई और नाना कुछ दिनों के लिए दरबार के कार्य से उदासीन होकर पुरन्धर चला गया । नाना की गैर हाजिरी में मोरोबा ने मॉस्टिन के कहने पर बम्बई की कौन्सिल को यह गुप्त पत्र लिख भेजा कि श्राप फौरन राघोबा को पेशवा की मसनद पर बैठाने के लिए फिर से पूना ले अाइए । बम्बई कौन्सिल ने, जो केवल एक सहारा ढूंढ रही थी, पुरन्धर की सन्धि के विरुद्ध फौरन तैयारियां शुरू कर दी। धारन हेस्टिग्स ने भी खबर पाते ही बम्बई की कौन्सिल की मदद के लिए एक बहुत बड़ी सेना बंगाल से पूना भेजे जाने की आज्ञा दे दी। ___ करनल अपटन और उस समय के अन्य अंगरेजों के बयानों से साफ जाहिर है कि पूना दरवार सच्चाई के साथ पुरन्धर की