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भारत में अंगरेज़ी राज

२६ भारत म अंगरेजी राज सन्धि पर कायम रहना चाहता था; किन्तु वारन हेस्टिंग्स और उसके साथियो को इंगलिस्तान ने विश्वासघात करने की आज्ञा मिल चुकी थो! कम्पनो की सेनाएँ अभी पूना के लिए रवाना भी न हो पाई थी कि पूना मन्त्रिमण्डल के फिर से बदलने की खबर कलकत्ते पहुँची। मालूम होता है कि अंगरेजों के लाभ मोरोबा के पत्र का हाल किसी प्रकार खुल गया । मोरोश अहमदनगर के किले में कैद कर दिया गया। नाना फड़नवीस श्रद पेशवा का प्रधान मन्त्री नियुक्त हुआ। सखाराम बापू बहुत बूढ़ा था, वह अब दरवार के कामों से अलग रहता था, उसमें और नाना में फिर से प्रेम हो गया। पूना दरवार में कोई भी अब हत्यारे राघोबा के पक्ष में न था। किन्तु कम्पनी की दुरंगी नोति जारी रही। एक ओर मॉस्टिन पूना दरबार में रह कर नाना फड़नवीस और उसके साथियों को यह विश्वास दिलाता रहा कि अंगरेज पुरन्धर की सन्धि पर कायम रहना चाहते हैं और शीघ्र उसकी सब शर्तों को पूरा कर देंगे, और दूसरी ओर वारन हेस्टिंग्स पुरन्धर की इस सन्धि के खिलाफ राघोबा को पेशवा बनाने के लिए बम्बई, मद्रास और कलकत्ते से सेनाएँ भेजने की ज़बरदस्त तैयारियाँ करता रहा। वारन हेस्टिंग्स ने जो सेना कलकत्ते में तैयार की वह मई सन् १७७८ में करनल लेसली के अधीन बंगाल से कलकत्ते से अंगरेज़ी ो चली। इस सेना को भोसले, होलकर, सींधिया सेना का कूच इत्यादि कई भारतीय नरेशो के इलाकों से होकर