भारत में अंगरेजी राज की नींव रक्खी और दूसरे सूबेदारों के लिए एक बुरी मिसाल कायम की। अंगरेजों को भारत के अन्दर अपना राज जमाने में भी समय समय पर निज़ाम कुल से काफी सहायता मिली। वारन हेस्टिंग्स ने उस समय के निज़ाम को बहकाया कि दिल्ली सम्राट तुम्हें दक्खिन की सूबेदारी से हटाकर निज़ाम का विश्वास बैटरअली को तम्हारी जगह देना चाहता है। घात और हैदरअली के अंगरेज़ों पर गुण्टूर का इलाका कुछ समय पहले अंगरेज़ों ही हमले ने निज़ाम से छीन कर अपने मित्र करनाटक के नवाब मोहम्मदअली को दे दिया था। हेस्टिंग्स ने अब वह इलाका निजाम को वापस दिलवा दिया। इस तरह हेस्टिंग्स ने नाना और हैदरअली दोनों के खिलाफ निजाम को अपनो ओर फोड़ लिया, किन्तु हैदरअली पर वारन हेस्टिंग्स को चालों का कोई असर नहीं हुआ। उसने नाना का सन्देशा पाते हो अपने पास के अंगरेजो इलाकों पर हमला कर दिया। उसको विजयों का हाल अगले अध्याय में दिया जायगा। इधर हेस्टिंग्स को करनल गॉडर्ड की हार का समाचार मिला। इस समाचार को सुनकर हेस्टिंग्स का साहस एकदम टूट गया। एक ओर हैदरअलो के भयंकर हमले और दूसरी ओर गॉडर्ड की लजाजनक हार। दोनों से घबराकर हेस्टिंग्स ने पेशवा दरबार के साथ तुरन्त सन्धि कर लेने ही में अपनी खैरियत देखी। वारन हेस्टिंग्स ने अब नागपुर के मूदाजी भोसले से प्रार्थना की कि श्राप मध्यस्थ बनकर नाना फड़नवीस और अंगरेजों में
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