पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/५९५

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हैदरअली

हैदरअली ३१६ अरकाट का नवाब अंगरेजों से मिल चुका था और निजाम भी हैदरअली को धोखा देता हुआ मालूम होता था। दूसरे उन दिनों मराठों के हमले का हैदरअली को बराबर डर लगा रहता था । तीसरे स्वयं मैसूर में उसका शासन अभी हाल ही का जमा हुआ था और वह बहुत दिनों तक राजधानी से दूर न रह सकता था। इन सब बातो से मजबूर होकर सितम्बर सन १७६८ में हैदरअली ने अंगरेजों सं सुलह की बात चीत शुरू की। अंगरेजो को इससे विश्वास हो गया कि हैदरअली की हालत कमजोर है और हम आसानी से उसके सारे इलाके को फतह कर लेंगे। उन्होंने अपमान के साथ हैदरअली के दूत को अपने यहाँ से लौटा दिया। किन्तु हैदर कायर न था, उसने अब जोरों के साथ युद्ध की तैयारी शुरू की। नवम्बर सन् १७६८ में अंग्रेजों को मैसूर राज्य से बाहर निकालने के लिए उसने अपने एक सेनापति फजलुल्लाह खाँ को सेना सहित रवाना किया। इसके बाद हैदर खुद सेना लेकर आगे बढ़ा। सब से पहले उसने अपने उन किलों को फिर से एक एक कर विजय करना शुरू किया, जिन पर अंगरेजी सेना हैदरअली की विजय के ' ने कब्जा कर लिया था। इनमें कावेरीपट्टम का और शत्रु के साथ उसकी उदारता किला एक मुख्य किला था । हैदरअली ने उसका मोहासरा शुरू किया। अंगरेजों ने अपनी तोपों से किले की रक्षा का पूरा प्रबन्ध कर रक्खा था। हैदरअली की तोपों ने किले के बाहर से गोलाबारी शुरू की। करीब तीन घंटे की