३२० भारत में अंगरेजी राज गोलाबारी के बाद अंगरेजी सेना को फ़सील छोड़ कर पीछे हट जाना पड़ा। अंगरेज सेनापति ने विवश होकर सुलह का सफेद झंडा दिखलाया। हैदर ने लड़ाई बन्द कर दी और किले पर कब्जा कर लिया। किले के भीतर के तमाम अंगरेज़ सिपाहियों की हैदर ने जान बलरा दी और उन्हें इस बात की इजाजत दे दी कि तुम लोग अपने हथियार रख कर मद्रास लौट जाओ। कम्पनी के देशी सिपाहियों को उसने मौका दिया कि तुम लोग चाहे अपने घर लौट जाओ और चाहे मैसूर की सेना में भरती हो जाओ। ये हिन्दोस्तानी लिपाही करीब करीब सब हैदरअली की सेना में आकर भरती हो गए । हैदरअली ने इस बात का भी हुकुम दे दिया कि कम्पनी का हर अफसर और सिपाही, सिवाय हथियारों, गोले बारूद, घोड़ों ओर उस तमाम माल के जो इंगलिस्तान के बादशाह या अंगरेज कम्पनी या नवाब मोहम्मदअली का है, बाकी सब निजी सम्पत्ति अपने साथ ले जा सकता है। किले के पराजित अंगरेज सेनापति ने जव हैदरअली से निवेदन किया कि रसद इत्यादि का बहुत सा सामान मैंने अपने निजी रुपए से खरीदा है, तो उदार हैदरअली ने उसे अपने खजाने से उस सामान का दाम तक दिलवा दिया। एक ओर हैदरअली का व्यवहार पराजित शत्रु के साथ इतना उदार था, दूसरी ओर अंगरेजों ने इसी युद्ध में अगरज़ा के व्यवहार हैदरअली के एक छोटे से किले धर्मपुरी पर के साथ तुलना ' कब्ज़ा करते हुए, उस समय जब कि सुलह का
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