पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/६०१

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हैदरअली

हैदरअली ३२५ है कि आप फ़ौरन लौटकर सुलतान से जा मिले। इस छल के बाद इसी दूत ने टीपू की सेना से निकल कर आगे बढ़कर मद्रास के अंगरेजों को विजय की सूचना दी, जिसकी झूठी खुशी में एक सौ एक तो मद्रास के किले से छोड़ी गई। नातजरुबेकार टीपू ने धोखे में आकर अपने सेनापतियों से सलाह की। सब की सलाह यही हुई कि इस हालत में मद्राल के किले का मोहासरा करना ठीक नहीं । टीपू अपनी सेना सहित पीछे लौटकर पिता से आ मिला। माँ के जाने के दूसरे दिन हैदरअली बनियमवाड़ी के किले को ओर बढ़ा। वनियमवाड़ी का किला भी एक निहायत मजबूत किला था, किन्तु हैदर की हैदर की विजय चन्द घन्टे की गोलाबारी ने किले की अंगरेजी तोपों को ठण्डा कर दिया। किले के अंगरेज़ अफ़सर ने सफ़ेद झण्डा गाड़ दिया। हैदर की सेना ने किले पर कब्जा कर लिया। हैदर ने किले के तमाम अंगरेज अफसरों और सिपाहियों को उनसे यह वादा कराकर छोड़ दिया कि हम लोग कम से कम एक साल तक किसी लड़ाई में आपके खिलाफ न लड़ेंगे। इस किले की रक्षा का उचित प्रबन्ध करके हैदरअली आम्बूर . की ओर बढ़ा । श्राम्बूर के मोहासरे में हैदरअली पीरजादा खाकी " का एक प्रसिद्ध मित्र पीरज़ादा खाकीशाह घायल होकर मर गया। यह पीरजादा एक मुसलमान फ़कीर था, जो अक्सर हैदर की सेना के साथ रहा करता था। शाह