पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/६३

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वे और हम

वे और हम २५ जीवन द्वारा ही पैदा हो सकते हैं और इंगलिस्तान निवासियों को इस तरह के सुसभ्य जीवन का कभी भी सौभाग्य प्रास न हुआ था। इंगलिस्तान और भारत की टक्कर ___सत्रहवीं सदी के शुरू में इस तरह की एक कौम के साथ भारत जैसे प्राचीन देश का पहली बार सम्पर्क हुश्रा । करीब सौ साल तक वे केवल यहाँ थोड़ा बहुव व्यापार कर धन कमाते रहे । अठारही पदो के शुरू में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य को संहति में फरक पड़ा । सौ साल के अन्दर इन विदेशियों की लालसा और आकांक्षा बेहद बढ़ चुकी थी। न्याय अन्याय या ईमानदारी बेईमानी का कोई सवाल उस समय उनकी श्राकांक्षाओं और उनकी पूर्ति के उपायों में बाधा डालने वाला न था। तिजारती कोलियों के बहाने इन लोगों ने शिलबन्दी शुरू को । उदार भारतीय नरेशों ने इसकी तनिक भी परवा न की। देश में व्यापार की उन्हें खुली इजाज़त और अनेक सुविधाएँ दी ही जा चुकी थीं। विदेशियों का बल बढ़ता गया। भारतीय व्यापार से उचित और अनुचित तरीकों से उन्होंने बेहद धन कमाना शुरू किया । धन से फौजें रक्खी गई । नौजों की मदद से उन्होंने मद्रास और बंगाल मे भारतीय नरेशों के आपसी झगड़ों में कभी एक का और कभी दूसरे का पक्ष लेना शुरू किया। इस कूटनीति और इन साजिशों द्वारा विदेशियों का बस्न और बढता चला गया । दिल्ली साम्राज्य की निर्बलता के कारण कोई केन्द्रीय शक्ति इस समस्त स्थिति को समझने और उसका उपाय कर सकने वाली बाकी न रह गई थी। भारतीय नरेशों को एक दूसरे से लडाकर इलाके पर इलाका विदेशियों के शासन में आता गया। अब हम कुछ अंगरेज़ इतिहास लेखको ही के विचार इस