३५२ भारत में अगरेजी राज कहलाता था। दिल्ली दरबार के सूबेदारों में उसकी गिनती थी। मैसूर का वह 'दैव' था। ओर हम ऊपर लिख चुके हैं कि मैसूर राज के अंदर 'दैव' का पद ठीक वैसा ही था जैसा मराठा साम्राज्य के अंदर पेशवा का ! 'देव' की गद्दी अत्र हैदरअली के कुल में पैतृक हो गई थी। अपनी वीरता द्वारा उसने मैसूर राज को बहुत अधिक बढ़ा लिया था। भरते समय उस तमाम इलाके को छोड़कर, जो उसने हाल के युद्ध में अपने शत्रुओं से विजय किया था, उसके बाकी राज का क्षेत्रफल अस्सी हजार वर्गमील था, जिसको सालाना बचत शासन का तमाम खर्च निकाल कर तीन करोड़ रुपए से ऊपर थी। उसकी कुल स्थायी सेना तीन लाख चौबीस हजार थी, जिनमे १६,००० सवार, १०,००० तोपख़ाने के सिपाही, १,१५,०८० पैदल और १,८०,००० इस तरह की सेना थी जो दूसरे सरदारों के अधीन हर समय तैयार रहतो थी और आवश्यकता पड़ने पर बुला ली जाती थी। उसके खजाने के जवाहरात और नकदी का अन्दाजा अस्सी करोड़ रुपये से ऊपर का था। उसकी पशु शालाओं में ७०० हाथी, ६,००० ऊँट, ११,००० घोड़े, ४,००,००० गाय और बैल, १,००,००० भैस, और ६०,००० भेड़े थीं। उसके शस्त्रागार में ६,००,००० बन्दुक, २,००,००० तलवार और २२,००० तोपें थीं। हैदरअली अपने समय का अकेला भारतीय नरेश था जिसने . अपने समुद्र तट की रक्षा के लिए एक जहाज़ी साल सना बेडा. जिसके हर जहाज पर तो लगी हुई थी. रख रक्खा था। उसकी जलसेना अपने समय की एक ज़बरदस्त
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