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भारत में अंगरेज़ी राज

३६६ भारत में अंगरजो राज होकर मोहम्मदअली अंगरेजों की मांगें भी पूरी करता रहा और यूरोपियन व्यापारियों का दिन पर दिन कर्जदार भी होता चला गया। कम्पनी के नौकरों के इन अत्याचारों से बचने का उसे कोई उपाय न सूझता था। ऐसी हालत में नौजवान मैक्फरसन गवरनर जनरल होने से बहुत दिनों पहले अरकाट पहुँचा । उसने नवाब मोहम्मदअली से मिलकर उसे यह पट्टी पढ़ाई कि यदि आप मुझे अपनी ओर से वकील बनाकर इंगलिस्तान भेज दें तो वहाँ के मन्त्रियों से कह कर मैं आपकी सब शिकायत दूर करा हूँ और कर्जे माफ करा दूं। भोले नवाब ने मंजूर कर लिया। मैक्फरसन उसका वकील बनकर सन् १७६८ में इंगलिस्तान पहुँचा । इस चाल से मैक्फरसन ने मोहम्मद अली को खब जी भर के लूटा । यहाँ तक कि उसने कई लाख रुपए इंगलिस्तान के प्रधान मन्त्री तक को रिशवत देना चाहा । और जब प्रधान मन्त्री ने यह रिशवत स्वीकार न की, तो मैक्फरसन ने उसे ७० लाख रुपए से ऊपर कर्ज (१) के तौर पर देना चाहा। किन्तु लिखा है कि प्रधान मन्त्री ने इसे भी मंज़र न किया। करनाटक के नवाब की शिकायते तो इंगलिस्तान में कौन सुनता था और कहाँ दूर हो सकती थीं, किन्तु इन तरीकों से मैक्फरसन ने कम्पनी के डाइरेक्टरों और इंगलिस्तान के मन्त्रियों पर अपना खब असर जमा लिया । वह फिर कम्पनी की नौकरी में भारत भेजा गया और तरक्की करके पहले कलकत्ते की कौंसिल का मेम्बर और फिर मौक़ा मिलने पर गवरनर जनरल बना दिया गया।