भारत में अंगरेजी राज कॉर्नवालिल के समय में हिन्दोस्तान का केवल थोड़ा सा हिस्ता कम्पनी के अधीन था और बाकी बहुत देश की दशा उड़ा हिस्सा मराठो, टीपू, निजाम और नवाब अवध के शासन में था, किन्तु दोनों हिस्सों की तुलना अत्यन्त शिक्षाप्रद थी। ब्रिटिश भारत चारो ओर उजाड़, दरिद्र और वीरान नज़र आना था और देशी भारत इधर से उधर तक हर भरा, खुशहाल और आवाद दिखाई देता था। देशी भारत के अन्दर की आपसी लड़ाइयाँ भी प्रजा की खुशहाली के लिए उतनी घातक न होतो थीं जितनी ब्रिटिश भारत का लगातार कुशासन और आए दिन की जायज और नाजायज़ लूट । प्रजा के जान माल की उस समय के चिटिश भारत में कोई भी कद्र या हिफाजत न थी । इस कथन के समर्थन में उस समय के अनेक देशी और विदेशी लेखकों की गवाही पेश की जा सकती है। हम यहाँ पर केवल कम्पनी की एक सरकारी रिपोर्ट से एक वाक्य नकल करते हैं । सन् १८१२ की पाँचवीं सरकारी रिपोर्ट में लिखा है-- "राजशाही में डकैती खूब फैली हुई है । xxx फिर भी लोगों की हालत की ओर क्लाफ़ी ध्यान नहीं दिया जाता। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वास्तव में लोगों की जान और माल की कोई हिफाज़त नहीं की जाती । बगाल के अधिकांश जिलों की यही हालत है।"* "Thunarotesters prevalentinkal Shaya Fet the Skuation of the people is not suthiciently attended to cart ihermenicd. that, in Point of fact, there is no protertuor for persons or propertyS h
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